
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक दलित परिवार के घर खाना पकाया। खाना बनाने का वीडियो उन्होंने सोमवार को X पर शेयर किया। उन्होंने लिखा- दलित किचन के बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं।
वीडियो में राहुल गांधी कहते नजर आ रहे हैं कि महाराष्ट्र के कोल्हापुर में मुझे अजय तुकाराम सनदे ने अपने घर बुलाकर किचन में हाथ बंटाने का मौका दिया। हमने मिलकर हरभऱ्याची भाजी बनाई। इसे चने के साग की सब्जी भी कहा जाता है। साथ ही बैंगन की सब्जी और तुअर दाल बनाई।
दलित क्या खाते हैं, कैसे पकाते हैं, कोई नहीं जानता। इसका सामाजिक और राजनीतिक महत्व क्या है, इसके बारे में हमने बात की। भेदभाव और सनदे के निजी अनुभवों पर बात करते हुए हमने दलित खानपान के प्रति जागरूकता की कमी और इस संस्कृति के डॉक्युमेंटेशन के महत्व पर चर्चा की।
सनदे ने राहुल से कहा- किसी के मिलेट्स खाओ बोलने से ये महंगा हो गया। दरअसल, पीएम नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में मिलेट्स पर जोर देते रहे हैं।




सनदे बोले- हम कभी भाजपा को वोट नहीं देते
सनदे और राहुल गांधी ने महंगाई को लेकर भी चर्चा की। सनदे ने कहा- लहसुन बहुत महंगा हो गया है। कोई बोल रहा है कि मिलेट्स खाओ, मिलेट्स खाओ। उनके खाओ बोलने से हमारा मिलेट्स महंगा हो गया है, जो पहले बहुत सस्ता था।
मैंने कांग्रेस को कभी वोट नहीं दिया। 4 इलेक्शन तक कांग्रेस को वोट नहीं दिया, क्योंकि हमारा बेल्ट शेतकरी कामगारों का था। हम भाजपा को भी कभी वोट नहीं देते। उन्हें कभी देंगे भी नहीं, लेकिन अब शेतकरी पार्टी खत्म हो गई है, इसलिए मैं आपकी भारत जोड़ो यात्रा में भी आया था।

दलित परिवार से राहुल के सवाल-जवाब
- राहुल गांधी: कास्ट सिस्टम को देखने का एक तरीका है, जो मुझसे नीचे है, उसकी स्पेस की मैं रिस्पेक्ट नहीं करूं। सनदे: मेरे गांव में जो अपर कास्ट हैं, वो क्या खाते हैं, वह मुझे पता है, लेकिन मैं क्या खा रहा हूं, वह किसी को नहीं पता।
- राहुल: आपको क्या लगता है कि सब कुछ आइडेंटिफिकेशन के लिए किया था, ताकि पता लग जाए कि कौन क्या है। सनदे: हां, पुराने समय में अगर हाथ में काला धागा बांधा है तो समझ आ जाता था कि यह दलित आदमी है। पिछले 10 साल में भी बहुत शार्पनेस आ गई है। आप क्या खाओगे, यह भी गवर्नमेंट तय करेगी। लोग जानते नहीं है कि आप क्या खाते हो कैसे खाते हो, इसलिए मैं यहां आया हूं।
- राहुल: आपने किताब में लिखा कि जाति वाला कल्चर आपकी रिक्वेस्ट नहीं करता। इसके बारे में बताइए। एक होता है कि भैया हम आपको छुएंगे ही नही। यह डायरेक्ट डिसरिस्पेक्ट होती है। एक डिसरिस्पेक्ट होती है कि आप जो खाते हैं, वह हमें पसंद नहीं। सनदे: मेरा गांव में घर हैं। वहां पड़ोस में अगड़ी जाति के शख्स का घर हैं। वे मेरे घर में आएंगे, लेकिन घर आकर खाना नहीं खाएंगे। चाय भी नहीं पिएंगे। यह स्थिति आज भी है। खाने को धर्म से जोड़ा हुआ है। आप क्या खाते हो, इसलिए आप बड़े हो या छोटे हो।
- राहुल: घर में लेडीज खाना बनाती हैं। उनका दोगुना काम हो जाता है। सनदे: बाबा साहेब ने भी लिखा है कि सब दलित नहीं हैं, लेकिन लेडीज सब दलित हैं। अगर ये बर्तन सवर्ण के घर का है। इसको अगर मैंने छू लिया तो बर्तन को आग में डालने के बाद इस्तेमाल करते थे। ये कोई पुरानी बात नहीं है।
- राहुल: आपको क्या लगता है कि यह भेदभाव कभी ठीक होगा? सनदे: नहीं, मुझे नहीं लगता। अब तो और बढ़ता जा रहा है।
- राहुल: साउथ अफ्रीका में चमड़ी के बेसिस पर भेदभाव होता है। सनदे: वह बेहतर है, क्योंकि चमड़ी दिखती है। यहां पर तो सब लोग अपनी जाति छिपाते हैं। सरनेम छिपाते हैं। सरनेम चेंज कर देते हैं।
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