
राजधानी लखनऊ में रईसजादों ने एक सिपाही को चौकी में बंद करके बुरी तरह पीटा। उसकी वर्दी फाड़ दी। कुत्ता कहकर बुलाया। चौकी में तोड़फोड़ की। वजह सिर्फ इतनी थी कि सिपाही ने आपस में झगड़ रहे चारों रईसजादों को रोका था।
इस बात पर उनका इगो हर्ट हो गया। वे भड़क गए। सिपाही को कॉलर पकड़कर घसीटते हुए चौकी ले गए। वहां बेरहमी से पीटा। शोर-शराबा सुनकर बाकी पुलिसवाले पहुंचे। उन्होंने सिपाही को पीटने वाले 4 में से 3 आरोपियों को पकड़ लिया।
पुलिस के मुताबिक, चौथा आरोपी इनोवा लेकर फरार हो गया। दावा किया जा रहा है कि यह चौथा आरोपी पुलिस मुख्यालय में तैनात ADG का बेटा है। यही वजह रही कि पुलिस ने मामले को दबाए रखा। वारदात के 12 दिन बाद यानी 11 जून को FIR सामने आई।
घटना 29 मई देर रात की थी। अगले दिन, यानी 30 मई को हजरतगंज थाने में चुपचाप FIR दर्ज की गई। घटना के 5 दिन बाद यह मामला पहली बार तब चर्चा में आया, जब पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने डीजीपी को पत्र लिखकर इसकी शिकायत की। हालांकि, पुलिस तब भी चुप्पी साधे रही।

13 दिन बाद भी चौथा आरोपी नहीं तलाश कर पाई पुलिस
सिपाही से मारपीट में ADG के बेटे के शामिल होने की बात को इसलिए भी बल मिल रहा है कि लखनऊ पुलिस 13 दिन बाद भी उसकी पहचान नहीं कर पाई। FIR में 3 आरोपियों के नाम तो लिखे गए हैं। लेकिन, चौथे आरोपी को अज्ञात बताया गया।
DCP मध्य आशीष कुमार श्रीवास्तव से दैनिक भास्कर ने जब चौथे आरोपी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा- चौथे आरोपी की पहचान की जा रही है। बाकी, तीनों आरोपियों को निजी मुचलके पर थाने से जमानत दे दी गई। इन आरोपियों के नाम- जयप्रकाश सिंह, अभिषेक चौधरी और सुमित कुमार हैं। चौथा आरोपी इनोवा लेकर भाग गया।
लेकिन सवाल उठता है कि क्या सीसीटीवी से लैस शहर में पुलिस उस गाड़ी का नंबर तक अब तक नहीं पता कर पाई। यही नहीं, आरोपियों से पूछताछ में भी पुलिस उस चौथे आरोपी तक नहीं पहुंच पाई। ऐसे में पुलिस कार्रवाई पर अब सवाल उठने लगे हैं।

जिस सिपाही को पीटा गया, उसने FIR में क्या लिखा, हूबहू पढ़िए:
सिपाही अर्जुन चौरसिया ने FIR में कहा
29 मई की रात मैं पालीगंज-6 पर मौजूद था। मैं गश्त करते हुए पुलिस चौकी स्टेडियम के पास पहुंचा। वहां एक सफेद रंग की इनोवा गाड़ी खड़ी थी, जिसमें चार लोग सवार थे। चारों किसी बात को लेकर आपस में झगड़ रहे थे।
मैंने उन्हें शांत कराने की कोशिश की, तो वे भड़क गए और मुझे ही गालियां देने लगे। अचानक चारों मुझ पर हमलावर हो गए। मुझे ‘कुत्ता’ कहा। फिर जबरन मुझे स्टेडियम चौकी पर ले जाने लगे और बोले- आओ, इसे इसकी चौकी में ही पीटते हैं।’ इसके बाद चारों ने मिलकर मुझे बहुत मारा-पीटा और मेरी वर्दी फाड़ दी।
पुलिस चौकी के अंदर रखी सरकारी संपत्ति को इधर-उधर फेंक दिया। इसके बाद मुझे जान से मारने की धमकी देते हुए फिर पीटा। शोर-शराबा सुनकर थाने से पुलिस चौकी पर पहुंची और मेरा बचाव किया। इसी बीच उनमें से एक व्यक्ति सफेद रंग की चार पहिया गाड़ी लेकर भाग गया।
आरोपियों की बोलचाल और हरकतों से लग रहा था कि वे सभी नशे में थे। तीन आरोपियों से नाम-पता पूछा गया। उन्होंने अपने नाम जयप्रकाश सिंह, अभिषेक चौधरी और सुमित कुमार बताए। चौथे व्यक्ति के बारे में कुछ नहीं बताया।

नाम छिपाया, पूछताछ तक नहीं की… सीधा छोड़ दिया
सिपाही की तहरीर पर तीन आरोपियों के खिलाफ शांति भंग, सरकारी कार्य में बाधा, मारपीट, धमकी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसी धाराओं में मामला दर्ज किया गया है। लेकिन आईपीएस अफसर के बेटे को लेकर पुलिस की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है।
चश्मदीदों का कहना है- पुलिस ने तीन हमलावरों को थाने लाकर कानूनी कार्रवाई की, लेकिन जो युवक ADG का बेटा था, उससे न पूछताछ हुई, न उसका नाम लिखा गया, न ही गिरफ्तारी की गई। उसे मौके से ही सम्मानपूर्वक छोड़ दिया गया। FIR में उसका नाम ‘अज्ञात’ लिखा गया, जबकि मौके पर मौजूद पुलिसकर्मी जानते थे कि वह कौन है और किसका बेटा है।
पुलिस महकमे के भीतर इस घटना को लेकर चर्चा तेज है। सूत्रों ने बताया कि घटना को लेकर पुलिसकर्मियों में भी आक्रोश है। लेकिन, मामला अफसर के बेटे से जुड़ा होने के चलते कोई खुलकर सामने नहीं आ रहा।
सीनियर अफसरों ने ऑफ द रिकॉर्ड कहा कि यदि आरोप सही हैं, तो यह बेहद शर्मनाक है। एक सामान्य व्यक्ति द्वारा सिपाही की पिटाई और सरकारी संपत्ति की तोड़फोड़ पर उसे तत्काल जेल भेजा जाता, लेकिन यहां एक VIP बेटे को खुला छोड़ दिया गया।

7 साल तक की सजा हो सकती है
आरोपियों के खिलाफ बीएनएस की धारा 115 (2), 121 (1), 131, 352, 351 (3) के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है। एडवोकेट मोहम्मद हातिम ने बताया कि धारा 115 (2) में जब कोई व्यक्ति किसी को जानबूझकर चोट पहुंचाता है, तब लगती है। इसके तहत एक साल तक की कैद, 10 हजार रुपए तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
121 (1) सरकारी कर्मचारियों को अपने कर्तव्य का पालन करने से रोकने या बाधा डालने के लिए चोट पहुंचाने की धारा है। इसमें 5 साल तक की जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है। कोई व्यक्ति बिना किसी कारण दूसरे व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुंचाता है, तो धारा 131 लगती है। इसके तहत 3 महीने तक की कैद या 1,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
धारा 352 में किसी का अपमान करके उसे उत्तेजित करना, जिससे वह सार्वजनिक शांति भंग करे या कोई अपराध करे। इसमें दोषी को 2 साल तक का कारावास, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। धारा 351 (3) जान से मारने, गंभीर चोट पहुंचाने, संपत्ति को आग लगाकर नुकसान पहुंचाने या महिला पर चरित्र लांछन लगाने की धमकी देने पर लगाई जाती है।
इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम 7 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
8 दिन पहले पूर्व IPS ने DGP को लिखा था लेटर
8 दिन पहले पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने यूपी के डीजीपी को इस मामले को लेकर एक पत्र लिखा था। उन्होंने इस प्रकरण को गंभीर और भ्रम की स्थिति उत्पन्न करने वाला करार दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें जिस एडीजी अधिकारी का नाम बताया गया है, वह इस समय डीजीपी कार्यालय में तैनात हैं। इसलिए इस मामले की जांच किसी निष्पक्ष वरिष्ठ अधिकारी से कराई जानी चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आ सके और दोनों पक्षों के बीच फैली भ्रम की स्थिति समाप्त हो सके।

अमिताभ ठाकुर ने कहा था कि इस मामले में दो पूरी तरह से अलग-अलग कहानियां सामने आ रही हैं।
- पहली कहानी – एडीजी के बेटे ने नशे की हालत में केडी सिंह बाबू स्टेडियम के पास सिपाही अर्जुन यादव और दरोगा पांडे पर हमला किया। बाद में एडीजी की पत्नी ने थाने में दरोगा को चांटा मारा।
- दूसरी कहानी – हजरतगंज इंस्पेक्टर, एसीपी समेत कई पुलिसकर्मियों ने एडीजी के बेटे से बिना कारण मारपीट की।