निजी स्कूलों की मनमानी अभिभावकों पर भारी पड़ रही हैं। चुनावी मौसम में ड्रेस, किताब और स्टेशनरी तक में कमीशन के खेल से सालभर का बजट बिगड़ता दिख रहा हैं। बावजूद इसके निरंकुश स्कूल, इन मसलों पर पूरी तरह से बेपरवाह दिख रहा हैं।
कई गुना महंगी किताबें, फीस भी बढ़ी
कृष्णा नगर निवासी वीरेंद्र अवस्थी कहते हैं कि निजी स्कूलों में दो बच्चों की पढ़ाई सालभर के बजट को तबाह कर रही हैं। साल भर के खर्चे से कटौती कर सत्र की शुरुआत के लिए पैसे बचाते हैं पर हर बार उम्मीद से कई गुना महंगी किताबें हो जाती हैं। फीस भी हर साल बेहिसाब ही बढ़ती हैं। पर सबसे बड़ी बात इसकी कही कोई सुनवाई नही होती।
ऐसा लगता हैं कि निजी स्कूलों पर कोई नियम और कानून लागू ही नही होते। बच्चों को सबसे अच्छी तालीम मिले ये सोचकर प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं, पर इन स्कूल वालों का रवैया कतई हित में नही रहता। बुक्स, स्टेशनरी, ड्रेस से लेकर यहां तक की प्रोजेक्ट जैसे रोजमर्रा के कई इवेंट के नाम पर जमकर वसूली की जाती हैं।
निजी स्कूल बने वसूली का अड्डा
लखनऊ के गोमती नगर स्थित निजी बैंक में कार्यरत आशीष त्रिपाठी कहते हैं बच्चों की पढ़ाई के लिए अभिभावक सब कुछ करने को तैयार रहते हैं। पर स्कूलों की ऐसी मनमानी ठीक नहीं हैं। पहले बच्ची को एक मिशनरी स्कूल में पढ़ा रहा था। जब हालात बदतर हो गए, तब स्कूल बदल दिया। एडमिशन के लिए भी जबरदस्त मारामारी रही। बड़ी मुश्किल के बाद एडमिशन मिला तो एक बार फिर निजी स्कूलों के कमीशन का खेल बेनकाब हुआ। स्टेशनरी और ड्रेस हर जगह के लिए दुकान तय हैं।
आम दुकानों पर सामान लेने पर दुकानदार कुछ कम ज्यादा कर देता हैं। पर इन दुकानों पर कम करने की बात कहना गुनाह के बराबर हैं। किताबों की दुकानों पर इस कदर भीड़ हैं कि बिल जोड़ने तक का मौका नही मिलता। कुल मिलाकर कहा जा सकता हैं कि दाखिले से लेकर पढ़ाई पूरी करने तक वसूली का ये खेल जारी रहता हैं।
कमीशन के खेल में पहले से तय हैं सब कुछ
लखनऊ के एलडीए कॉलोनी निवासी गिरीश मिश्रा कहते हैं कि मेरे 2 बच्चे पढ़ रहे हैं। बड़ा बेटा 12वीं की पढ़ाई पूरी कर, अब ग्रेजुएशन कर रहा हैं पर बेटी अभी 9वीं में पढ़ाई कर रही हैं। मुझे ऐसा लगता हैं कि ग्रेजुएशन से ज्यादा स्कूल की पढ़ाई में खर्चा आता हैं। यहां स्कूल की किताबें, स्टेशनरी और ड्रेस समेत सभी सामान के लिए दुकान फिक्स हैं। पहले तो वो सामान कही और मिलता नही, यदि मुश्किल से कही ढूंढ कर लाकर दो, तो स्कूल में टीचर बहाना बनाकर उसके न चलने की बात कहते हैं।
बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो यही कारण रहता है कि कोई कुछ बोलता नहीं, जिसके चलते निजी स्कूल निरंकुश हो जाते हैं। सरकारी स्कूलों में कम से कम ये समस्या नही रहती हैं। बहरहाल यदि कोई ठोस कदम नही उठाए गए तो आने वाले हालात और बदतर होंगे।
नियम के तहत बढ़ती हैं स्कूल फीस
अनएडेड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल कहते हैं कि किताबें और ड्रेस स्कूल में बेचने का नियम नही हैं। बाजार में किसी भी दुकान से इसे खरीदा जा सकता हैं। रही बात फीस बढ़ाने की तो हर साल CPI में 5% का इजाफा कर फीस बढ़ाने पर सहमति बनी हैं। कोरोना के कारण 3 साल तक कोई फीस निजी स्कूलों ने नहीं बढ़ाई। उसके बाद जो भी फीस बढ़ाई गई वो इस नियम के तहत ही बढ़ी। इससे ज्यादा कोई स्कूल बढ़ाते हैं तो वो इसका हम खुद ही विरोध करते हैं।
इसके अलावा सबसे अहम बात यह है कि यह समझना पड़ेगा कि स्कूलों के खुद भी बहुत खर्च हैं। इन खर्चों से निपटने के लिए फीस बढ़ाना मजबूरी हैं। वही स्कूलों की आमदनी का जरिया सिर्फ फीस हैं। यही कारण हैं कि ये कदम उठाने पड़ते हैं। पर वसूली की बात गलत हैं, यदि ऐसे स्कूलों की शिकायत मिलती हैं तो एसोसिएशन अपने स्तर से भी एक्शन लेता हैं।