लखनऊ
राजधानी में पत्रकारों पर हमले अब एक आम घटना बन चुकी हैं। देश के चौथे स्तंभ, पत्रकार, जो अपनी निष्पक्षता और निर्भीकता के साथ समाज में व्याप्त बुराईयों और कुरीतियों को उजागर करते हैं, अब खुद ख़तरे में हैं। पत्रकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक प्रताड़ना भी झेलनी पड़ रही है। ऐसे अराजक तत्वों द्वारा किए जा रहे हमलों से यह सवाल उठता है कि क्या सच बोलने वालों को अब अपनी सुरक्षा की चिंता करनी पड़ेगी?
कल शाम राजधानी में एक बार फिर पत्रकारों पर हमले का एक खौ़फनाक मामला सामने आया। सिविल कोर्ट के बाहर एक पत्रकार पर कथित वकीलों के भेष में कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने हमला किया। यह हमला उस समय हुआ जब पत्रकार अदालत के गेट के पास खड़ा था। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जब पत्रकार पर हमला हो रहा था, तो न तो वहां कोई प्रशासनिक अधिकारी आया और न ही किसी ने उसकी मदद की। पत्रकार को बुरी तरह मारा गया और उसे मृत मानकर हमलावरों ने उसे मूर्छित अवस्था में छोड़ दिया और फरार हो गए।
घटना के बाद, स्थानीय लोगों ने पत्रकार को गंभीर हालत में देखकर उसे बलरामपुर अस्पताल में भर्ती कराया। पत्रकार का इलाज चल रहा है, और उसकी हालत अब स्थिर बताई जा रही है। इसके बाद, पीड़ित पत्रकार की शिकायत पर वज़ीरगंज थाने में एफआईआर दर्ज की गई है। थाना एसएचओ ने बताया कि इस मामले में आरोपियों को जल्द ही गिरफ्तार किया जाएगा और कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
यह घटना राज्य सरकार और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी करती है। जहां एक ओर राज्य सरकार पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए लगातार प्रयासरत है, वहीं दूसरी ओर ऐसी घटनाएं सरकार और प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़ा करती हैं। क्या यह सिलसिला जारी रहेगा या फिर पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर ठोस कदम उठाए जाएंगे, यह देखना अब महत्वपूर्ण होगा।
चौथे स्तंभ पर हो रहे इस हमले को लेकर पत्रकार समुदाय में गहरी चिंता है। क्या अब पत्रकारों को अपनी जान की सलामती के लिए एक नया संघर्ष शुरू करना होगा? सरकार को चाहिए कि वह पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए, ताकि इस प्रकार के हमले भविष्य में न हों।