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इंडो नेपाल देवी भक्तों की आस्था का केंद्र है वागेश्वरी मंदिर।

रुपईडीहा बहराइच। पड़ोसी नेपाली जिला बांके के मुख्यालय नेपालगंज स्थित माता वागेश्वरी का मंदिर नेपाल ही नही भारतीय क्षेत्रों के लिए भी गौरव व श्रद्धा के प्रतीक के रूप में अवस्थित है। वह इसलिए कि नेपाली जिलों के अतिरिक्त भारत के श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, बाराबंकी व बहराइच तक के श्रद्धालु माता का पूजन करने शारदीय व चैत्र नवरात्रों में मंदिर में पहुंचते हैं। इस समय शारदीय नवरात्र में मंदिर में भारी भीड़ चल रही है। मंदिर निर्माण के संबंध में अनेकों दंत कथाएं व तथ्य प्रचलित है। मंदिर अपनी ऐतिहासिकता व पौराणिकता के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में आज भी प्राचीन काल से चली आ रही शासकीय बलि प्रथा मौजूद है। लोगो मे यह विश्वास है कि जो भी भक्त मनौती के लिए यहां धागा बांधता है उसकी मनोकामना माता पूर्ण करती हैं।

मुंडन व वैवाहिक संस्कार भी होते हैं मंदिर में।
आस्थावान श्रद्धालु नवरात्रों में ही अपने बच्चों का मुंडन संस्कार यहीं कराने आते हैं। भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों से सपरिवार लोग पहुंच कर इसी मंदिर में मुंडन संस्कार कराते हैं। वैवाहिक संस्कार भी वर्ष भर मुहूर्त के अनुसार इस मंदिर में होते रहते हैं। प्रत्येक नवरात्र की प्रतिपदा से ही नवमी तक मंदिर पहुंचने वाले आस्थावानों की भीड़ लगी रहती है।

24वी पीढ़ी के महंत कर रहे हैं पूजा।

भवानी भक्त डॉ सनत कुमार शर्मा कहते हैं कि 24वी पीढ़ी के कन फटे महंत यहां पूजा कर रहे हैं। दुर्गा सप्तशती के देवी कवच के 33वे श्लोक के अनुसार रोम कूपेषु कौबेरी, त्वचं वागेश्वरी तथा अर्थात वाणी के अधिष्ठात्री माता सरस्वती का रूप यहां देदीप्यमान मान है।

मंदिर में कायम है पंचबलि का विधान।

प्राचीन काल से मंदिर में शासन की ओर से सप्तमी को महिष बलि विधान है। मां दुर्गा महिषासुर मर्दनी है। इसीलिए प्रथम बलि भैसे की दी जाती है। उसके पश्चात बकरे, बतख, मुर्गे व भेड़ा की दी जाती है। श्रद्धालुओं की मनौती पूर्ण होने पर पूरे दिन बलि चलती रहती है। बलि के लिए घेरा बना हुआ है। उसी में बलि दी जाती है।

नाथ सम्प्रदाय के अनुसार होती है पूजा।

कनफटे नाथ सम्प्रदाय के पुजारी ही मंदिर में पूजा करते हैं। मंदिर का संबंध भारत के तुलसीपुर स्थित पाटनदेवी मंदिर से है। इन मंदिरों में अहर्निश अखंड ज्योति जलती रहती है। एक मंदिर में ज्योति बुझने पर दूसरे मंदिर से ज्योति लायी जाती है। मंदिर का पुजारी सुबह 3 बजे उठ कर स्नानादि से निवृत्त होकर मुख में पट्टी बांधकर परिक्रमा करते हुए माता का द्वार खोलता है। द्वार बंद कर मंदिर के अंदर माता का पूजन करता है।

मंदिर के सामने सरोवर का हो रहा जीर्णोद्धार।

मूंछ वाले भगवान भूतनाथ हाथ मे त्रिशूल लिए खड़ी प्रतिमा के रूप में विद्यमान थे। यहां तक पहुंचने के लिए पुल जर्जर हो चुका था। अब नया निर्माण हो रहा है। पक्का पुल बनने के बाद फिर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की जाएगी।

वाराणसी की तर्ज पर मंदिर में शुरू हुई महा आरती।नवरात्र में उमड़े श्रद्धालु।

शिव व शक्ति के उपासकों ने नेपाल में अब वाराणसी की तरह वागेश्वरी मंदिर में महा आरती शुरू की है। प्रत्येक सोमवार को इस महा आरती में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लग जाती है। इसमें श्रद्धालुओं की शाम को भारी भीड़ लग जाती है।

 

नीरज कुमार बरनवाल रुपईडीहा
8/10/2024

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