लोकसभा चुनाव में यूपी में मिली करारी हार से भाजपा उबर नहीं पा रही है। समीक्षा बैठकों में आरोप-प्रत्यारोप खुलकर सामने आए। मारपीट तक की स्थिति बन गई। जिस मजबूत संगठन की बात कही जा रही थी, उसमें जिला स्तर पर दरार आ गई।
सबसे ज्यादा भाजपा के सिटिंग विधायक डरे हैं, जिनकी सीटों पर भाजपा की हार हुई। खुले तौर पर वे संदेह के घेरे में आ गए। हारे सांसदों ने समीक्षा बैठक में इसे कोट भी किया।
3 साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन उसके पहले जो संदेह खड़ा हुआ है, उसे मिटाना मुश्किल लग रहा। विधायकों को अभी से टिकट कटने और चुनाव में भितरघात का डर सताने लगा है।
आखिर क्यों समीक्षा बैठकों में कार्यकर्ताओं के बीच नाराजगी सामने आई? भाजपा की समीक्षा रिपोर्ट में क्या निकलकर सामने आया? जानिए इस रिपोर्ट मे.
हार-जीत की समीक्षा रिपोर्ट तैयार हो गई है। रिपोर्ट लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी को दिल्ली पहुंच गए हैं। रिपोर्ट भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौंपेंगे। रिपोर्ट को तैयार करने के लिए चौधरी ने टास्क फोर्स टीम बनाई थी। वह खुद भी कई प्रमुख सीटों पर समीक्षा करने पहुंचे।
चौधरी ने खुद संगठन के पदाधिकारियों के साथ क्षेत्रवार बैठक कर रिपोर्ट तैयार की। टास्क फोर्स को हर लोकसभा और विधानसभा सीट पर हार के कारणों की पड़ताल करने की जिम्मेदारी सौंपी। टास्क फोर्स में 40 टीमें बनाई गई थीं। हर टीम को 2-2 लोकसभा सीटों पर पड़ताल करनी थी। इसकी विस्तृत रिपोर्ट 20 जून को सौंपने को कहा गया था।
जहां वोट कम हुए, वहां भी हुई समीक्षा
खास बात यह है कि भाजपा सिर्फ उन सीटों पर समीक्षा नहीं करा रही, जहां उसे हार मिली। उन सीटों की भी समीक्षा की गई, जहां उसके उम्मीदवार जीत तो गए, लेकिन वोट पिछले लोकसभा चुनाव से कम मिला।
यूपी में भाजपा को इस बार 33 सीटों पर तो NDA के अन्य सहयोगियों को तीन सीटों पर जीत मिली, 2019 में भाजपा को 62 सीटें मिली थीं।
अब जानिए किन सीटों पर भाजपा की समीक्षा बैठकों में विवाद हुआ
सिद्धार्थनगर: समीक्षा बैठक से पहले कार्यकर्ताओं के बीच जमकर मारपीट
डुमरियागंज सीट पर भाजपा चुनाव जीत गई, लेकिन वोट प्रतिशत कम हो गया। इसकी समीक्षा के लिए सिद्धार्थनगर के इटवा विधानसभा क्षेत्र में बैठक बुलाई गई। इसमें काशी क्षेत्र के क्षेत्रीय महामंत्री सुशील तिवारी, मथुरा से विधायक राजेश चौधरी, पूर्व बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी और जिले के अन्य भाजपा पदाधिकारी मौजूद थे।
पदाधिकारी डाक बंगले के अंदर बैठे थे। बाहर कार्यकर्ता थे। इसी बीच कुछ लोग आरोप लगाने लगे कि लोकसभा चुनाव में जो लोग साइकिल चला रहे थे, वो यहां क्यों आए?
बात इतनी बढ़ गई कि दो गुटों में हंगामा शुरू हो गया। जिलाध्यक्ष के खिलाफ नारेबाजी शुरू हो गई। देखते ही देखते लात-घूसे चलने लगे।
इस दौरान कार्यकर्ताओं ने एक-दूसरे को जमकर पीटा। इस बीच बड़े नेता लड़ाई रुकवाने की कोशिश करते रहे। जब इन नेताओं से वाकये को लेकर सवाल पूछे गए, तो उन्होंने चुप्पी साध ली।
सहारनपुर: PWD मंत्री, नगर विधायक पर चुनावी हार का ठीकरा फूटा
सहारनपुर हार को लेकर भाजपा के प्रदेश महामंत्री गोविंद नारायण शुक्ला ने समीक्षा बैठक की। इस दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं ने PWD राज्यमंत्री कुंवर बृजेश सिंह और विधायक राजीव गुंबर पर हार ठीकरा फोड़ा।
दोनों पर साजिश कर सीट हराने का आरोप लगाया। इसके बाद विवाद जैसी नौबत बन गई और बैठक रोकनी पड़ी। फिर एक-एक पदाधिकारी को अंदर बुलाकर हार का कारण पूछा गया।
कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया- नानौता में ठाकुरों की महापंचायत के बाद भाजपा के खिलाफ माहौल तैयार हुआ। महापंचायत कराने में भाजपा के मंत्री और नेताओं का हाथ रहा। मंत्री ने ठाकुरों की महापंचायत को फंडिंग की।
भाजपा के नगर विधायक राजीव गुंबर ने चुनाव हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। तभी राज्यमंत्री बृजेश सिंह के समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच नोकझोंक हो गई। यहां हुए हंगामे की रिपोर्ट हाईकमान को भेजी गई है।
अवध क्षेत्र: बैठक में प्रत्याशियों ने हार के पीछे विधायकों का हाथ बताया
जून के दूसरे हफ्ते में पार्टी ने अवध क्षेत्र में हारी और कम वोट प्रतिशत वाली सीटों की समीक्षा के लिए बैठक की। इसमें कानपुर से लेकर बुंदेलखंड क्षेत्र की सीटें शामिल थीं।
बैठक में चर्चा के दौरान कार्यकर्ताओं ने हार का ठीकरा विधायक पर फोड़ा। बांदा से प्रत्याशी आरके पटेल ने तो सीधे विधायकों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। कहा- भितरघात की वजह से मुझे कुर्मी वोट तक नहीं मिला।
दूसरे प्रत्याशियों ने कहा कि चुनाव के दौरान उनके क्षेत्र के विधायक निष्क्रिय रहे और अपनी ही पार्टी को हराने की मुहिम चलाते रहे। तमाम कोशिशों के बाद भी OBC वोट बैंक बिखराव को नहीं रुका।
लखनऊ में विधायक बोले- पुलिस ने मुझे भी नहीं बख्शा
लखनऊ में राजनाथ सिंह का दौरा था। उससे पहले महानगर कमेटी की बैठक हुई। मुद्दा राजनाथ सिंह का दौरा था, लेकिन चर्चा लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन की हुई।
अधिकांश कार्यकर्ताओं में नाराजगी दिखी। अपेक्षा से कम वोटिंग होने पर पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को कारण बताया गया। उत्तर क्षेत्र के विधायक डॉ. नीरज बोरा ने कहा- त्रिवेणीनगर के ब्राइट लैंड स्कूल मतदान केंद्र पहुंचे तो मेरे साथ दो इंस्पेक्टर ने अभद्रता की।
धक्का-मुक्की हुई। इसको लेकर विधायक ने चुनाव आयोग से लेकर कमिश्नर ऑफिस तक शिकायत की। मगर कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कहा- ऐसी घटनाओं से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है।
फैजाबाद लोकसभा सीट को लेकर उठे ज्यादा सवाल
भाजपा के लिए सबसे बड़ी हार फैजाबाद-अयोध्या सीट को माना जा रहा है। कहा गया कि राम मंदिर निर्माण के बाद यहां पर भाजपा की जीत आसान होगी, लेकिन सपा ने इस सीट पर जीत हासिल की।
अयोध्या हार की समीक्षा भूपेंद्र चौधरी अयोध्या पहुंचे। समीक्षा बैठक चौधरी के सामने जिला संगठन पदाधिकारियों ने प्रत्याशी के व्यवहार के बारे में कई बातें बताईं। कहा- यहां कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई।
समीक्षा बैठकों में हंगामे से लगाया जा रहा रिपोर्ट का अंदाजा
हार वाली सीटों पर समीक्षा बैठक के दौरान जैसा माहौल रहा, उससे रिपोर्ट आने से पहले ही उसके नतीजों का अंदाजा लगाया जाने लगा। अब तक बैठक के अंदर से जैसी खबरें सामने आती रही हैं, उससे यह साफ हो गया है कि चुनावी जंग के साथ ही पार्टी के अंदर स्थानीय स्तर पर एक आंतरिक जंग चल रही थी।
इसके भागीदार लोकसभा प्रत्याशी से लेकर, विधायक और संगठन के पदाधिकारी तक थे। इन चक्करों में भाजपा अपने कोर वोट बैंक गैर यादव पिछड़ी जातियों के करीब 8 फीसदी वोट से हाथ धोना पड़ा।
इसका ही नतीजा है कि भाजपा ने चुनाव के समय संगठन को जिस तरह की सक्रियता के आदेश दिए थे। वो अब समीक्षा रिपोर्ट बनाने के लिए हर लोकसभा क्षेत्र के हालात जानने में दिखाई जा रही।
लोकसभा नतीजों ने विधायकों की भी नींद उड़ा दी
साल 2027 में यूपी में अगला विधानसभा चुनाव होने वाला है। पार्टी को उम्मीद थी कि 2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी यूपी ही बहुमत का रास्ता बनाएगा।
फिर नतीजे आए और संगठन को एहसास हुआ कि वो जमीन से कितने कटे हुए थे। लोगों में कितनी नाराजगी थी। संगठन के अंदर कितनी खींचतान थी। समीक्षा बैठकों में कई जिलों के प्रत्याशियों ने स्थानीय विधायकों पर सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया।
हालांकि, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से इतर स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाएगा, लेकिन पार्टी के जिलास्तर और ब्लॉक स्तर पर मचे घमासान से विधायक डरे हुए हैं।