देश के आधे हिस्से में मानसून पहुंच चुका है और आधे हिस्से को अभी भी मानसून की पहली बारिश का इंतजार है। UPLIVE.NEWS में 420 करोड़ साल पुराना किस्सा जानेंगे, जब सुलगती पृथ्वी पर पहली बूंद गिरी और फिर लगातार 20 लाख सालों तक बारिश होती रही…
4.6 अरब साल पहलेः सूर्य का जन्म हुआ और फिर पृथ्वी जैसे अन्य ग्रह बने
ज्यादातर सोलर साइंटिस्ट की थ्योरीज के मुताबिक 4.6 अरब साल पहले हमारा सौरमंडल सिर्फ गैस और धूल के घने बादलों से घिरा हुआ था। इनसे दूर एक तारा हुआ करता था। एक दिन अचानक उस तारे में एक विशाल विस्फोट हुआ। इस सुपरनोवा विस्फोट की शॉकवेव से बादल तेजी से घूमने लगा, जिसे सोलर नेब्युला कहा गया।
अब बादल में गैस और धूल के कण पास-पास आ गए। बादल के घूमने की स्पीड बढ़ती ही जा रही थी। इससे धूल और गैस के कण एक सेंटर पॉइंट पर इकट्ठा होने लगे। सेंटर पॉइंट पर गुरुत्वाकर्षण बल बढ़ता गया।
दबाव इतना अधिक बढ़ गया कि हाइड्रोजन एटम ने एक दूसरे के साथ मिलकर हीलियम बनाना शुरू कर दिया। इससे भारी मात्रा में ऊर्जा निकलने लगी। ऊर्जा की इसी आग में से एक जलता हुआ विशाल गोला यानी सूर्य का जन्म हुआ। सूर्य के बनने से बादल में मौजूद 99% पदार्थ खत्म हो गया।
हालांकि, इसके बाद भी शेष गैस और धूल का बादल घूमता रहा और इससे पृथ्वी, बुध जैसे ग्रहों के बनने की प्रक्रिया शुरू हुई। गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सभी ग्रह सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाने लगे, जिसे अब सौरमंडल कहते हैं।

शुरुआती पृथ्वी में एक ओर आसमान से उल्का पिंड धरती पर बरस रहे थे तो दूसरी तरफ लगातार ज्वालामुखी विस्फोट हो रहे थे। इनमें से हाइड्रोजन सल्फाइड, मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें निकल रही थीं। उस समय तक पृथ्वी पर पानी केवल गैस के रूप में मौजूद था।

जब पहली बूंद गिरी, उस वक्त 5 घंटे की रात होती थी
करीब 4 अरब साल पहले पृथ्वी आज के मुकाबले काफी तेज गति से घूमती थी। उस समय 5 घंटे का दिन और 5 घंटे की रात होती थी। वहीं दूसरी तरफ पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी हो रही थी। इससे धरती की सतह के नीचे यानी मेंटल सरफेस में मौजूद गैस और पानी बाहर निकलकर भाप बनने लगती है जो चारों तरफ फैलकर घने बादलों वाला वातावरण (एटमॉस्फियर) बनाती है। उसी दौर में एक रात धरती पर बारिश की पहली बूंद गिरी। इसके बाद पृथ्वी पर बारिश का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जो अगले 20 लाख सालों तक नहीं थमा।
हालांकि, वैज्ञानिक बताते हैं कि उस समय पृथ्वी पर सामान्य बारिश नहीं बल्कि अम्लीय वर्षा (एसिड रेन) हो रही थी। इससे धरती धीरे-धीरे ठंडी होने लगी। पानी में जीवन पनपने लगा। इसके बाद धरती के सबसे पहले महासागर ने पृथ्वी को पूरी तरह से ढंक लिया था।
कुछ लोगों के मन में जिज्ञासा हो सकती है कि पहले 10 घंटे के दिन रात होते थे, फिर अब 24 घंटे के क्यों होने लगे। दरअसल, चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी पर एक ब्रेक की तरह काम करता है। इस कारण पृथ्वी के अपने एक्सिस पर घूमने की गति कम होती चली गई और दिन धीरे-धीरे लंबे होने लगे। नेचर जियोसाइंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी पर 1 अरब साल तक 19 घंटे का दिन होता था। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आज के समय में हर 100 सालों में दिन 1.7 मिलीसेकेंड बड़ा हो जाता है।

इतनी बारिश से पृथ्वी ठंडी हो गई। लाखों साल बाद पृथ्वी पर बादल छटे और बारिश भी रुक गई। अगले दिन बादलों के बीच से चमकता हुआ सूरज दिखा। पानी में डूबी धरती पर अल्ट्रावॉयलेट लाइट पड़ी। ऐसी सुबह पृथ्वी पर शायद ही पहले हुई थी। पहली धूप की किरण के साथ ही पृथ्वी पर जीवन के शुरुआती साक्ष्य भी दिख रहे थे। सूक्ष्म जीव पानी में तैर रहे थे। हमारा ग्रह जो कभी धूल के कण, पत्थर और गैस से बना था अब एक जीवित ग्रह बन गया था।
पृथ्वी पर पहली बारिश के सबूत
दुनियाभर के तमाम जियोलॉजिस्ट और वैज्ञानिक धरती पर पहली बारिश के बारे में रिसर्च कर रहे हैं। 1970-80 के दशक में पहली बार 20 लाख सालों तक चली बारिश की जानकारी सामने आई।
दरअसल, इसके लिए वैज्ञानिकों ने 23 करोड़ साल से अधिक पुरानी कुछ चट्टानों की परतों (लेयर्स) पर स्टडी की। जियो साइंटिस्ट श्लेगर और शोलनबर्गन ने ऑस्ट्रिया के नॉर्थ आल्प्स के चूना पत्थर चट्टानों का अध्ययन किया। उन्होंने कॉर्बोनेट रॉक के भीतर भूरे रंग की सिलिकिकलास्टिक चट्टान की एक अजीबोगरीब लेयर देखी। इसे उन्होंने 23.4 करोड़ वर्ष पहले का बताया। यह चट्टान पैंजिया की गर्म, शुष्क क्लाइमेट के अनुरूप नहीं थी।

इस तरह की चट्टान आम तौर पर नमी या अधिक पानी वाले वाले क्षेत्र में दिखाई देती हैं। रिसर्चर्स की टीम ने साउथ-वेस्ट इंग्लैंड, इटली और यूटा, US में भी ऐसे ही चट्टानों की लेयर्स को खोजा।
पुरानी चट्टानों की परतों से खुला बारिश का राज
इसी तरह दुनिया के अलग-अलग वैज्ञानिकों ने कई तरह के अध्ययन किए। इन तमाम अध्ययनों से निष्कर्ष निकला कि एक समय ऐसा था जब पृथ्वी पर काफी लंबे समय तक सूखा पड़ा और फिर बारिश होने लगी।
जियोलॉजिस्ट ने बताया कि डायनासोर के युग की शुरुआत में धरती पर काफी ज्यादा नमी (Wet Period) थी, या यूं कहें कि धरती पर काफी ज्यादा पानी था। इस अवधि को वैज्ञानिकों ने कार्नियन प्लुवियल पीरियड नाम दिया।
हाल ही में चीन और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों की टीम ने एक रिसर्च पेपर पब्लिश किया है। जिसमें उन्होंने सबूत दिए हैं कि पृथ्वी पर पहली बारिश कब हुई थी। उन्होंने वेस्ट ऑस्ट्रेलिया की पुरानी चट्टानों के जिरकोन क्रिस्टल पर स्टडी की। उसमें मौजूद ऑक्सीजन को मापा तो उन्होंने अनुमान लगाया कि यह 3.2 से 4.2 अरब साल पहले पृथ्वी की चट्टानों में बना था। उन्हें कई ऐसे सबूत मिले, जिसके बाद उन्होंने कहा कि ये चट्टानें बारिश के ताजा पानी की मौजूदगी में बनी हो सकती हैं। इससे उन्होंने अंदाजा लगाया कि 3.8 अरब साल पहले पृथ्वी पर बारिश हुई थी।

आखिर क्यों लाखों साल तक हुई बारिश
धरती पर बारिश की जानकारी मिलने के बाद वैज्ञानिकों ने जियोलॉजिकल हिस्ट्री की इस सबसे दिलचस्प घटना के बारे में जानने के प्रयास किए। वैज्ञानिक पता लगाने में जुट गए कि आखिर पृथ्वी पर इतने लंबे समय तक बारिश क्यों हुई।
इसको लेकर अधिकतर वैज्ञानिकों के बीच एक आम राय है कि उस समय अलास्का और ब्रिटिश कोलंबिया के आसपास विशाल ज्वालामुखी विस्फोट हुए। पूरे वातावरण में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड फैल गई। साथ ही लंबे समय तक मौसमी बदलाव (ग्लोबल वार्मिंग) हुए। इससे धरती पर काफी ज्यादा आर्द्रता (ह्यूमिडिटी) बढ़ गई और वातावरण में नमी बढ़ने लगी। इसी के चलते लाखों सालों तक बारिश होती रही।
सालों चली बारिश के पीछे ज्वालामुखी थ्योरी
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्वालामुखी ही जल और कार्बन साइकिल को बदलने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली रहे होंगे, जिससे पृथ्वी का क्लाइमेट लंबे समय के लिए एक जैसा ही रहा होगा।
कुछ वैज्ञानिक समझाते हैं कि ज्वालामुखी विस्फोट की घटनाओं के कारण धरती के तापमान में काफी ज्यादा वृद्धि हुई, जिसके असर से महासागर गर्म हो गए और वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ गई जो लंबे समय तक बारिश की मुख्य वजह बनी।

दरअसल नमी ही बारिश की मुख्य वजह होती है। बारिश तब होती है जब नम हवा आसमान में उठती है, जहां यह ठंडी हो जाती है। जैसे-जैसे नम हवा ठंडी होती है तो वह पानी की छोटी बूंद में बदल जाती है। वो बादलों की तरह दिखते हैं। बाद में छोटी बूंदें इतनी बड़ी और भारी हो जाती हैं कि धरती पर बारिश के रूप में गिरने लगती हैं।
कुछ प्लेनेटॉलोजिस्ट का कहना है कि नई माउंटेन रेंज की वजह से भूमि और समुद्र के बीच के दबाव में परिवर्तन आया, जिसके चलते धरती पर ऐसा हुआ। हालांकि, अधिकतर वैज्ञानिक और एक्सपर्ट्स लंबी बारिश को लेकर ज्वालामुखी थ्योरी पर ही विश्वास करते हैं।